किसके आँगन पूर्णमासी है ,
मैने हर बस्ती तलाशी है
अब कहाँ सुख चैन मुस्काने है ,
भूख है छल है उदासी है
उम्र यौवन की शक्ल बूढी है ,
वाह क्या सूरत तराशी है
सड़क पर ईमान नंगा है ,
मौज में लुच्चा लफंगा है
जिसने सच के हाथ को थामा है,
उसी के पथ में अडंगा है
गाँव में डाका सफर में छल है,
शहर का संदेश दंगा है
इस तरह से परेशां हैं हम,
देश की छवि पर अचम्भा है
रो रही है कब से सिसक कर भोले वो ,
हाथ में जिसके तिरंगा है
मैने हर बस्ती तलाशी है
अब कहाँ सुख चैन मुस्काने है ,
भूख है छल है उदासी है
उम्र यौवन की शक्ल बूढी है ,
वाह क्या सूरत तराशी है
सड़क पर ईमान नंगा है ,
मौज में लुच्चा लफंगा है
जिसने सच के हाथ को थामा है,
उसी के पथ में अडंगा है
गाँव में डाका सफर में छल है,
शहर का संदेश दंगा है
इस तरह से परेशां हैं हम,
देश की छवि पर अचम्भा है
रो रही है कब से सिसक कर भोले वो ,
हाथ में जिसके तिरंगा है
By:-
My Grand Father
Bhola Prasad Nayak
(Retd. ASI OF POLICE)
At:-Jabalpur Medical Hospital 10-12-1983
3 comments:
the poems are gud sahab ji......:)
written 26 yrs. back but gives today's world's real scenario...simply superb poem by dada ji!!
its so good.
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